SHIV RUDRASHTAKAM शिव रूद्राष्टकम्

 SHIV RUDRASHTAKAM

            शिव रूद्राष्टकम्




 शिव रूद्राष्टकम् का वर्णन  तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस के उत्तर कांड में आता है. उत्तर कांड में काकभुशुण्डि जी गरूड़ जी को अपने पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं जिनमें भगवान शिव उन्हें गुरु का अपमान करने के कारण शाप देते हैं और उनके गुरु ने तब उन्हें शाप से शीघ्र मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव की  हाथ जोड़ कर विनती की थी.

            ।।छंद।। 

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ।। 


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।। 

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं।। 


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं ।मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।। 

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दुक कंठे भुजंगा ।। 


चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।। 

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।। 


प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं।अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।। 

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं।।

 

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।। 

चिदानंद संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।

 

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं।प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं।। 


न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं।। 

जरा जन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो।। 

                     श्लोक

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये। 

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु: प्रसीदति ।। 

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