DEVSHAYANI EKADASHI VRAT KATHA SIGNIFICANCE
देवशयनी एकादशी व्रत कथा
देवशयनी एकादशी का महत्व (Significance of Devshayani Ekadashi)
DEVSHAYANI EKADASHI VRAT KATHA (देवशयनी एकादशी व्रत कथा)
पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में मांधाता नाम का एक सूर्यवंशी राजा था जो कि सत्यवादी और प्रतापी था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी ।एक बार उसके राज्य में अकाल पड़ा जिसके कारण प्रजा को बहुत कष्ट सहने पड़े।
प्रजा ने राजा से उनके कष्टों का निवारण करने के लिए कहा। राजा मांधाता ऋषि अंगिरा के आश्रम पहुंचे और कहने लगे कि मैं धर्म के अनुसार शासन चलाता हूं फिर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया और प्रजा दुख सह रही है ।
आप मेरे संदेह का निवारण करें और उपाय बताएं जिससे प्रजा के कष्ट दूर कर सकूं। महर्षि अंगिरा कहने लगे कि सतयुग में केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने और तप करने का अधिकार है।
लेकिन आपके राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है इसलिए आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही ।प्रजा की भलाई के लिए उस शुद्र का वध करें दे । राजा कहने लगा कि मैं निरपराध तपस्या कर रहे शूद्र को किस तरह मार सकता हूं ।आप मुझे इस दोष से मुक्ति का कोई और उपाय कहे।
अंगिरा ऋषि राजा मांधाता को आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष एकादशी का व्रत करने को कहा। ऋषि अंगिरा कहने लगे कि व्रत के प्रभाव से वर्षा जरूर होगी। इसलिए आप समस्त प्रजा और मंत्रियों सहित इस व्रत को करो।
राजा ने ऋषि के द्वारा बताई विधि अनुसार प्रजा सहित पद्मा एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से राज्य में वर्षा हुई और प्रजा सुखी हो गई ।
व्रत विधि (VRAT VIDHI)
एकादशी वाले दिन प्रातःकाल स्नान के पश्चात नारायण भगवान का पूजन करना चाहिए.
भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य और तुलसी पत्र अर्पित करने चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी पत्ता चढ़ाने का विशेष महत्व है.
इस दिन किए गए दान पुण्य का भी विशेष महत्व है.
भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करना चाहिए.
व्रती को फलाहार ही करना चाहिए.
रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है.
द्वादशी के दिन किसी ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए.
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